एस प्रदीपा. ये उसका नाम था. 17 साल की लड़की थी. पढ़ने में बहुत अच्छी. 10वीं में 98 फीसद नंबर लाई. इन्हीं नंबरों की बदौलत एक प्राइवेट स्कूल ने उसे स्कॉलरशिप दी. अपने यहां दाखिला देकर 11वीं और 12वीं की उसकी पढ़ाई का पूरा खर्च उठाया. 12वीं में भी उसके 93.75 पर्सेंट नंबर आए. फिर उसने आत्महत्या कर ली. क्यों? क्योंकि वो NEET नहीं निकाल पाई. पिछले साल और फिर इस साल, दोनों ही साल वो NEET में फेल हो गई. NEET माने नैशनल ऐलिजबिलिटी टेस्ट. 4 जून, 2018 को NEET का रिजल्ट आया. इसी दिन शाम को उसने चूहे मारने वाला जहर पीकर अपनी जान दे दी. NEET की परीक्षा जब से शुरू हुई, तब से ही विवादित है. रीजनल बोर्ड वालों का कहना है कि परीक्षा का सिस्टम ही ऐसा है कि वो पिछड़ जाते हैं.
पिता राजमिस्त्री, बच्चों को पढ़ाने की बहुत फिक्र की उन्होंने
तमिलनाडु का तिरुवन्नामलाइ. यहीं के एक दलित परिवार की बेटी थी प्रदीपा. 10वीं तक तमिल-मीडियम वाले सरकारी स्कूल में पढ़ती थी. प्रदीपा के पिता राजमिस्त्री का काम करते हैं. बच्चों को पढ़ाने-लिखाने की काफी फिक्र की उन्होंने. उनकी बड़ी बेटी ने MSC की. बेटा इंजिनियरिंग की पढ़ाई कर रहा है. प्रदीपा डॉक्टर बनना चाहती थी. लेकिन औरों की जान बचाने की सोचने वाली लड़की ने खुद की ही जान ले ली. 2017 में भी तमिलनाडु की एक लड़की ने ऐसे ही खुदकुशी की थी. उसका नाम अनीता था. कई छात्र इल्जाम लगाते हैं कि NEET की परीक्षा में गैर-हिंदी भाषी स्टूडेंट्स को दिक्कत आती है. अनीता के साथ कुछ और छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका डाली थी. उनका कहना था कि NEET का सिस्टम ही ऐसा है कि सेंट्रल बोर्ड से पढ़ने वाले बच्चों को पास होने में मदद मिलती है. बाकियों के लिए टेस्ट निकालना मुश्किल हो जाता है.
सचिन श्रीवास्तव, लखनऊ
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