अभी जब पूरी तरह प्रमाणित नहीं हुआ है कि भारतीयों द्वारा स्विस बैंक में जमा 7000 करोड़ रुपये कालाधन है या उदार योजना (एलआरएस-लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम) के तहत जमा की गई है, इससे पहले ही कांग्रेस समेत विपक्षी दलों द्वारा मोदी सरकार की घेराबंदी ‘कौवा कान ले गया’ की कहावत को ही चरितार्थ कर रहा है। समझना कठिन है कि जब सरकार द्वारा भरोसा दिया जा रहा है कि अगर किसी ने लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम के अलावा अवैध तरीके से धन जमा किया है तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी तो सियासी दल अनावश्यक वितंडा खड़ा क्यों कर रहे हैं।
दो राय नहीं कि गोपनीयता कानून की आड़ में स्विस बैंक दुनिया भर के कालेधन की सुरक्षित पनाहगाहों में से एक हैं और वहां भारतीयों द्वारा जमा की गई 7000 करोड़ रुपये की रकम चौंकाने वाला तथ्य है। इसलिए और भी कि भारत पिछले कुछ समय से दुनिया भर में भारतीयों द्वारा छुपाए गए कालेधन को वापस लाने की कोशिश कर रहा है। इसके बावजूद भी अगर स्विस बैंकों में भारतीयों की रकम बढ़ी है तो सवाल तो उठेगा ही,लेकिन इसका तात्पर्य यह नहीं कि कांग्रेस एवं विपक्षी दल टैक्स हैवन देशों के बैंकों में भारतीयों द्वारा जमा की गई संपूर्ण धनराशि को ब्लैकमनी मान लें।
उन्हें इस तथ्य से अवगत होना चाहिए कि लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम के कार्यकाल में लागू हुई थी और इसके तहत कोई भी व्यक्ति प्रति वर्ष 2.50 लाख डॉलर तक बाहर भेज सकता है। यह संभव है कि स्विस नेशनल बैंक में जमा7000 करोड़ रुपये का एक बड़ा हिस्सा लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम के तहत ही जमा किया गया हो। कार्यवाहक वित्तमंत्री पीयूष गोयल का मानना है कि 40 प्रतिशत से अधिक की धनराशि इसी स्कीम के तहत हो सकती है। कुछ इसी तरह के विचार वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी व्यक्त किए हैं और कहा है कि सारा पैसा टैक्स चोरी का नहीं हो सकता। विपक्षी दलों को सब्र रखना चाहिए कि कालेधन पर मोदी सरकार के कड़े प्रहार की वजह से ही स्विस बैंक में भारतीयों की कुल संपत्ति लगातार दूसरे वर्ष गिरावट के साथ पिछले वर्ष के आखिर में 320 करोड़ स्विस फ्रैंक तक ठहर गई।
आंकड़ों पर गौर करें तो 2016 में स्विस बैंकों में भारतीयों ने4500 करोड़ रुपये जमा किए थे जो 2017 में बढ़कर 7000करोड़ तक पहुंच गया है, पर ध्यान देना होगा कि मोदी सरकार के प्रयासों के कारण ही भारत एवं कई अन्य देशों द्वारा घपलों-घोटालों के साक्ष्य मुहैया कराने के बाद स्विट्जरलैंड ने विदेशी ग्राहकों की जानकारी देनी शुरू की है। जनवरी, 2019 से भारत को भी इसकी रियल टाइम जानकारी मिलनी शुरू हो जाएगी। फिर स्विस नेशनल बैंक में जमा धनराशि कालाधन है या लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम के तहत जमा हुई है, उस पर से पर्दा हट जाएगा।
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