उत्तर प्रदेश कुशीनगर देश में संविधान प्रत्येक नागरिक को जीने का अधिकार देता है। जीने के लिए अच्छे स्वास्थ्य का होना बेहद जरूरी है। हर व्यक्ति की कोशिश होती है कि वह और उसका परिवार सेहतमंद रहे लेकिन कई बार चाहे-अनचाहे उन्हें बीमारियां घेर लेती हैं। बीमारी होते ही रोगी व्यक्ति और उसके परिवार वाले अस्पताल का चक्कर लगाना शुरू कर देते हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें कई बार अलग-अलग समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसका कारण है मरीजों को अस्पताल में मिलने वाले अधिकारों की कम जानकारी होना। आइए आज हम आपको बताते हैं कि अगर आप अस्पताल में इलाज कराने जाते हैं तो आपके क्या-क्या अधिकार हैं।
1-इमरजेंसी में इलाज से मना नहीं कर सकता अस्पताल : कोई भी अस्पताल चाहे प्राइवेट हो या सरकारी, पेशेंट को तत्काल इलाज देने से मना नहीं कर सकता। इमरजेंसी में पेशेंट से प्रारंभिक इलाज के लिए अस्पताल पैसे तुरंत नहीं मांग सकता। किसी भी अस्पताल में पेशेंट जब इलाज के लिए पैसे देता है तो उसी वक्त वह कंज्यूमर हो जाता है और किसी भी तरह की शिकायत वह कंज्यूमर कोर्ट में कर सकता है।अगर किसी भी पेशेंट की दवाई या इलाज को लेकर कोई भी शिकायत है तो वह अस्पताल प्रशासन से शिकायत कर सकता है। ड्रग को लेकर लोकल फूड एंड एडमिनिस्ट्रेशन में इसकी शिकायत की जा सकती है।
2- खर्च की जानकारी : मरीज का यह अधिकार है कि इलाज से जुड़ी सभी जानकारी उसे दी जाए। उसे यह जानने का अधिकार है कि उसे क्या बीमारी है और वह कब तक उसके ठीक हो जाने की उम्मीद है। साथ ही इलाज करवाने में कितना खर्च आएगा इसकी जानकारी पाने का भी उसे हक है।
3- मेडिकल रिपोर्ट्स लेने का अधिकार : किसी भी मरीज या उसके परिवार वालों को यह अधिकार है कि वह अस्पताल से मरीज की बीमारी से जुड़े दस्तावेज की मांग कर सकते हैं। इन रिकॉर्ड्स में डायग्नोस्टिक टेस्ट, डॉक्टर या विशेषज्ञ की राय, अस्पताल में भर्ती होने का कारण आदि शामिल हैं।
4- सर्जरी से पहले डॉक्टर को लेनी होगी मंजूरी : रोगी की किसी भी तरह की सर्जरी करने से पहले डॉक्टर को उससे या उसकी देखरेख कर रहे व्यक्ति से मंजूरी लेनी जरूरी है। साथ ही डॉक्टर का यह भी कर्तव्य है कि वह मरीज को किए जाने वाले सर्जरी के बारे में अगाह करें।
5-अस्पताल नहीं बताएगा कि दवा कहां से लेनी है : कई बार मरीज और उसके परिवारवालों की शिकायत होती है कि अस्पताल उन्हें दवा की पर्ची देते वक्त कहता है कि दवा अस्पताल के दुकान से ही लें। नियम के मुताबिक ऐसा करने का अधिकार अस्पताल को नहीं है। यह मरीज का हक है कि वह दवा अपनी मर्जी की दुकान से खरीदे और साथ ही टेस्ट भी अपनी मर्जी की जगह से कराए।
6-जबरदस्ती मरीज को नहीं रखा जा सकता अस्पताल में : कई बार बिल न चुकाए जाने की वजह से अस्पताल मरीज को डिसचार्ज नहीं करता। बिल पूरा न दिए जाने की सूरत में कई बार लाश तक नहीं ले जाने दिया जाता है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने इसे गैर कानूनी करार दिया है। अस्पताल को मरीज को जबरन रोकने का कोई हक नहीं है।
7-कैसे करें कंज्यूमर कोर्ट में शिकायत : कंज्यूमर कोर्ट में शिकायतकर्ता एक सादे कागज पर पूरी शिकायत लिख कर दे सकता है। साथ ही वह कम्पनसेशन की मांग भी कर सकता है। बता दें कि डिस्ट्रिक कंज्यूमर कोर्ट 20 लाख, स्टेट कंज्यूमर कोर्ट 1 करोड़ और नेशनल कंज्यूमर कोर्ट 1 करोड़ से ज्यादा का कम्पनसेशन का आदेश दे सकता है।
रिपोर्टर जावेद अख्तर
1-इमरजेंसी में इलाज से मना नहीं कर सकता अस्पताल : कोई भी अस्पताल चाहे प्राइवेट हो या सरकारी, पेशेंट को तत्काल इलाज देने से मना नहीं कर सकता। इमरजेंसी में पेशेंट से प्रारंभिक इलाज के लिए अस्पताल पैसे तुरंत नहीं मांग सकता। किसी भी अस्पताल में पेशेंट जब इलाज के लिए पैसे देता है तो उसी वक्त वह कंज्यूमर हो जाता है और किसी भी तरह की शिकायत वह कंज्यूमर कोर्ट में कर सकता है।अगर किसी भी पेशेंट की दवाई या इलाज को लेकर कोई भी शिकायत है तो वह अस्पताल प्रशासन से शिकायत कर सकता है। ड्रग को लेकर लोकल फूड एंड एडमिनिस्ट्रेशन में इसकी शिकायत की जा सकती है।
2- खर्च की जानकारी : मरीज का यह अधिकार है कि इलाज से जुड़ी सभी जानकारी उसे दी जाए। उसे यह जानने का अधिकार है कि उसे क्या बीमारी है और वह कब तक उसके ठीक हो जाने की उम्मीद है। साथ ही इलाज करवाने में कितना खर्च आएगा इसकी जानकारी पाने का भी उसे हक है।
3- मेडिकल रिपोर्ट्स लेने का अधिकार : किसी भी मरीज या उसके परिवार वालों को यह अधिकार है कि वह अस्पताल से मरीज की बीमारी से जुड़े दस्तावेज की मांग कर सकते हैं। इन रिकॉर्ड्स में डायग्नोस्टिक टेस्ट, डॉक्टर या विशेषज्ञ की राय, अस्पताल में भर्ती होने का कारण आदि शामिल हैं।
4- सर्जरी से पहले डॉक्टर को लेनी होगी मंजूरी : रोगी की किसी भी तरह की सर्जरी करने से पहले डॉक्टर को उससे या उसकी देखरेख कर रहे व्यक्ति से मंजूरी लेनी जरूरी है। साथ ही डॉक्टर का यह भी कर्तव्य है कि वह मरीज को किए जाने वाले सर्जरी के बारे में अगाह करें।
5-अस्पताल नहीं बताएगा कि दवा कहां से लेनी है : कई बार मरीज और उसके परिवारवालों की शिकायत होती है कि अस्पताल उन्हें दवा की पर्ची देते वक्त कहता है कि दवा अस्पताल के दुकान से ही लें। नियम के मुताबिक ऐसा करने का अधिकार अस्पताल को नहीं है। यह मरीज का हक है कि वह दवा अपनी मर्जी की दुकान से खरीदे और साथ ही टेस्ट भी अपनी मर्जी की जगह से कराए।
6-जबरदस्ती मरीज को नहीं रखा जा सकता अस्पताल में : कई बार बिल न चुकाए जाने की वजह से अस्पताल मरीज को डिसचार्ज नहीं करता। बिल पूरा न दिए जाने की सूरत में कई बार लाश तक नहीं ले जाने दिया जाता है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने इसे गैर कानूनी करार दिया है। अस्पताल को मरीज को जबरन रोकने का कोई हक नहीं है।
7-कैसे करें कंज्यूमर कोर्ट में शिकायत : कंज्यूमर कोर्ट में शिकायतकर्ता एक सादे कागज पर पूरी शिकायत लिख कर दे सकता है। साथ ही वह कम्पनसेशन की मांग भी कर सकता है। बता दें कि डिस्ट्रिक कंज्यूमर कोर्ट 20 लाख, स्टेट कंज्यूमर कोर्ट 1 करोड़ और नेशनल कंज्यूमर कोर्ट 1 करोड़ से ज्यादा का कम्पनसेशन का आदेश दे सकता है।
रिपोर्टर जावेद अख्तर
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