उत्तर प्रदेश में विपक्ष ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हराने का मास्टरप्लान तैयार किया है। अखिलेश यादव और मायावती की जोड़ी ने मोदी लहर की काट निकालने की कोशिश की है जिसका ऐलान आज हो जाएगा। अखिलेश-मायावती की जोड़ी पीएम मोदी के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है क्योंकि उपचुनाव में ये जोड़ी कमाल दिखा चुकी है। ऐसे में इस बार यूपी में बीजेपी की राह आसान नहीं है। अखिलेश और मायावती दोनों ने साथ आने के संकेत काफी पहले से देने शुरू कर दिए थे। इस जोडी का फॉर्मूला यूपी में हुए उपचुनाव में निकला, जहां लोकसभा चुनाव में डंके बजाने वाली बीजेपी को चारो खाने चित होना पड़ा।
बीजेपी का गढ़ और योगी आदित्यनाथ का चुनावी क्षेत्र गोरखपुर बीजेपी के हाथ से निकल गया। इसके अलावा फूलपुर में भी मायावती के उम्मीदवार के चुनाव न लड़ने से बीजेपी को एसपी के हाथों हार का सामना करना पड़ा। कैराना और नूरपुर की सीट भी बीजेपी के हाथ से निकल गई। यूपी में हुए विधानसभा चुनाव में अखिलेश और राहुल की अच्छे लड़कों की जोड़ी पूरी तरह से फ्लॉप हो गई थी। वहीं 2014 के चुनाव में दोनों ही पार्टियों को बुरा हाल रहा था। 2014 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जहां 71 सीटें मिली थी। वहीं एसपी को 5 और कांग्रेस को दो सीटें मिली थी, जबकि बीएसपी अपना खाता भी नहीं खोल सकी थी
हालांकि मोदी लहर के बावजूद वोट प्रतिशत के मामले में एसपी-बीएसपी काफी मजबूत रही थी और अगर 2014 जैसी लहर मान ले तो ये गठबंधन आंकड़ों के हिसाब से मोदी सरकार के पसीने छुड़ा सकता है। 2014 में मोदी लहर के बावजूद सपा-बसपा 41.80 फीसदी वोट हासिल करने में कामयाब रही थी। जबकि बीजेपी को 42.30 फीसदी वोट मिले थे। सूबे में 12 फीसदी यादव, 22 फीसदी दलित और 18 फीसदी मुस्लिम हैं, जो कुल मिलाकर आबादी का 52 फीसदी हिस्सा है।
यूपी के जातीय समीकरण और इतिहास को देखें तो ये जोड़ी बीजेपी और मोदी के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है और पीएम के रास्ते का रोड़ा जो कि महागठबंधन से भी ज्यादा खतरनाक हो सकती है।
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