संतोष कौशल, सिद्धार्थनगर
बिस्कोहर । हरिबंधनपुर गांव के सम्मय माई मंदिर परिसर में आयोजित नौ दिवसीय श्रीशतचन्डी महायज्ञ के दूसरे दिन गुरुवार की सुबह वैदिक मंत्रों से मंडप प्रवेश व पंचांग पूजन वैदिक विद्वानों द्वारा कराया गया ।
सायंकाल चार बजे वैदिक मंत्रों द्वारा अरणीमंथन से अग्नि देवता का प्रादुर्भाव हुआ ।
रात आठ बजे कथा के दौरान कथा वाचक आलोकानंद शास्त्री ने श्रीराम वन गमन की कथा सुनाते हुए कहा कि संस्कार से बड़ा धन कुछ भी नही हो सकता है जिस व्यक्ति के जीवन में संस्कार नही है उसका जीवन अतुल्य है ।
श्रीराम भगवान होते हुए भी अपने माता - पिता की आज्ञा पालन हेतु 14 वर्ष के लिए वन को गये । भगवान श्रीराम ने माता - पिता का सम्मान करते हुए लोगों को उचित मार्ग दर्शन दिया ।
माता जानकी जी के चरित्र पर प्रकाश डालते हुए कथा व्यास ने बताया कि जब जानकी जी को पता चला कि श्रीराम वन जा रहें है तो वह अपने पति के पद चिन्हो पर चलने का निश्चय किया और किसी डर भाव के और सुख की आशा किए बिना साथ गई । लक्ष्मण जी ने भी अपने भईया भाभी के सेवा के लिए 14 वर्ष नींद न आ जाए अनन्या करने का निश्चय किया ।
कथा व्यास ने कहा कि आज तक कोई भाई अपने भइया व भाभी के लिए 14 वर्ष नही जगा होगा और न ही कोई पत्नी अपने पति के लिए वन गई होगी ।
अतः अगर धरती फिर से राम राज्य लाना है तो हमें अपने बडो के साथ आदर सम्मान का भाव रखना होगा और छोटों का सम्मान करना होगा तभी हमारे संस्कार का महत्व संसार को ज्ञात होगा ।
इस मौके पर यज्ञाध्यक्ष आचार्य दुर्गेश शास्त्री , त्रिपुरारी , सुधीर त्रिपाठी , अजय गुप्ता , सदानन्द शुक्ला , राम अनुज चौधरी , सदाऊ चौधरी , विद्या प्रकाश , सूर्य मणि ,जय प्रकाश पाण्डेय , प्रेम नरायन , सुबाष व रमेश पाण्डेय आदि भारी संख्या में श्रद्धालुं मौजूद रहें ।
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