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Monday, April 13, 2020

सिद्धार्थनगर -जलियांवाला बाग कांड के नरसंहार की 101 वी वर्षी।




अजय कुमार
राजकीय महाविद्यालय डुमरियागंज सिद्धार्थ नगर

नि संदेह 13 अप्रैल 1919 का बैशाखी का दिन भारतीय इतिहास का अत्यंत दु:खद एवं काला दिन रहा। इसी दिन जलियांवाला बाग कांड हुआ, जिसमें हजारों की संख्या निर्दोष लोगों की मौत हुई और बड़ी संख्या में लोग घायल हुए। आज  जलियांवाला बाग कांड 101 वी वर्षी पर शहीदों को कोटि कोटि नमन एवं श्रद्धांजलि।🙏
जलियांवाला बाग कांड का जिक्र आते ही, को ऐसा इंसान न हो, जिसकी आंखों में आसूं न जाय। यह भारतीय इतिहास सबसे बुरा दिन था। जलियांवाला बाग कांड ने भारतीय आंदोलन की दिशा और दशा बदल दी, जिसका अतिम परिणाम 15 अगस्त 1947 को भारत की आज़ादी के रूप में आया।
जलियांवाला बाग कांड की घटना को समझने के लिए अतीत के इतिहास में जाना होगा। दुनिया में 1914 से 1918, तक दुनिया में प्रथम विश्व युद्ध हुआ, जो विश्व इतिहास की सबसे बड़ी घटना रही।  प्रथम विश्व युद्ध एवं 1905   रूसी क्रांति  के  घटनाओं के फलस्वरूप भारत में क्रांतिकारी आंदोलन का प्रादुर्भाव  हुआ। क्रांतिकारी आंदोलन का प्रभाव बम्बई प्रेसीडेंसी, बंगाल , पंजाब के राज्यो में सर्वाधिक रहा। क्रांतिकारी आंदोलन का मुख्य उद्देश्य हिंसात्मक गतिविधियों के माध्यम से भारत को औपनिवेशिक सत्ता से मुक्ति दिलाना चाहता था। बीसवीं सदी के प्रारंभ में भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों का प्रसार हो रहा था, भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों  पर नियंत्रण के लिए अंग्रेज अधिकारी सर जान सेडिसन  ने एक अधिनियम  लाया, इसी के फलस्वरूप रौलेट एक्ट अस्तित्व में आया। रौलट एक्ट का मुख्य उद्देश्य में भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों पर अंकुश लगाना था। रौलट एक्ट को  बीना अपील, बीना दलील, बीना वकील का कानून कहा जाता था। इस कानून के द्वारा मात्र संदेह के आधार किसी को बंदी बनाने का अधिकार था।
10 अप्रैल 1919 को प्रदर्शन कारियों का  नेतृत्व कर रहे , सत्यपाल किचलू एवं सैफुद्दीन को गिरफ्तार कर लिया गया। 11 अप्रैल को पंजाब की जनमानस इनके रिहाई की मांग की। अंग्रेज़ी सरकार ने इस मांग को ठुकरा दिया। 12 अप्रैल को अंग्रेजी शासन के खिलाफ प्रदर्शन किया, और 3 अंग्रेज़ अधिकारियों की हत्या हुई। 13 अप्रैल 1919 को बैशाखी के शांतपूर्ण  ढंग से त्योहार मनाने के साथ , अंग्रेजी नीतियों का अहिंसक तरीके से विरोध करने के लिए अमृतसर के जलियांवाला बाग़ में कई हजारों की संख्या लोग एकत्र हुए।  इसमें सभी धर्मों के लोगों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। अंग्रेजों को लगने लगा कि अब कहीं ऐसा  1857 की क्रांति की पुनरावृत्ति तो न हो जाए? जनरल डायर ने 90 अंग्रेजी सैनिकों के साथ अमृतसर के जलियांवाला गया।बाग की घेराबंदी कर  अंधाधुंध फायरिंग कराया। जिसमें हजारों की संख्या   में  निर्दोष लोगों की मौत हुई। बड़ी संख्या में लोग हुए। अंग्रेज़ अधिकारी के मुताबिक 370 लोगों की मौत हुई, जबकि कांग्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक 1800 से अधिक की मौत हुई।
1919 में अंग्रेज गवर्नर लार्ड चेम्सफोर्ड ने सर विलियम हंटर  की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया। इसकी रिपोर्ट में इस नरसंहार के लिए जनरल डायर को  दोषी ठहराया। 1920 ई में जनरल डायर को पदावनत कर कर्नल बना दिया गया। पुनः उसे इंग्लैंड भेज दिया। हाउस आफ कामंस उसके खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया।
जलियांवाला बाग कांड ने भारत आंदोलन की दिशा बदल दी। गांधी जी ने सत्याग्रह सभा को गठित कर राष्ट्रव्यापी आंदोलन चलाने का निर्णय लिया। असहयोग आंदोलन इसका प्रथम चरण रहा। असहयोग आंदोलन को राष्ट्रव्यापी सफलता मिली, मात्र चौरी चौरा की घटना को आधार बनाकर इस आंदोलन गांधी जी ने स्थगित कर दिया। इससे भारतीय जनमानस में निराशा उत्पन्न हो गई। सुभाष चंद्र बोस ने इस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि गलती कन्याकुमारी करें, दंड हिमालय को क्यो मिले?
जलियांवाला बाग कांड एवं चौरी चौरा की घटना ने भारतीय आंदोलन की दिशा बदल दी। रवीन्द्र नाथ टैगोर ने नाइट हुड की उपाधि वापस कर दिया।
जलियांवाला बाग कांड में शहीदों के नाम स्मारक का शिलान्यास 1961 ई में प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद के द्वारा किया गया। इस स्मारक को एक अमेरिकी वास्तुकार के द्वारा बनाया गया। 1997ई में इंग्लैंड की महारानी के भारत दौरे के दौरान जलियांवाला बाग में जाकर श्रद्धांजलि अर्पित की।
जलियांवाला बाग कांड नि संदेह भारतीय इतिहास का काला दिन था। आज  जलियांवाला बाग कांड 101वर्षी पर शहीदों को नमन करते हुए विनम्र श्रद्धांजलि🙏🙏🙏🙏🙏


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