संतोष कौशल, सिद्धार्थनगर
बिस्कोहर । सोमवार को बलरामपुर जिले के उतरौला तहसील क्षेत्र से करोड़ों की संख्या में टिड्डियों का दल जिले के इटवा तहसील क्षेत्र में प्रवेश किया और सिंगारजोत , बिजौरा , दखिनहवा , सिकटा , डोमसरा, लेडसर , बेंव मुस्तहकम ,मल्हवार ,नकथर देवरिया, राउडीला, असनहरा आदि गांवों में इनका कहर जारी है। लोगों ने थाली आदि बजाकर गांव से टिड्डियों को भगाया । शाम सात बजे सोहना स्थित पूर्वांचल बैंक के सामने आम के बगीचे में आकर बैठ गयी ।
मंगलवार को भी टिड्डियों का आतंक जारी रहा । सोमवार को जहां टिड्डियों ने भनवापुर क्षेत्र के किसानों को परेशान किया था, वहीं दूसरे दिन मंगलवार सुबह दस बजे के करीब बिस्कोहर सहित क्षेत्र के फूलपुर राजा , मझौवा , बेलवा , डेगहर , संग्रामपुर , सिकरा , दोपेडौवा , मुडिला मिश्र , गदाखौवा , हरिबंधनपुर , कोहडौरा , बडहरा , गौरा बडहरी , गजपुर महादेव, सोहना , नावडीह , सिकौथा , इमिलिया आदि गांवों के किसानों की मुश्किलों को बढ़ा दिया।
ग्रामीणों ने डीजे , थाली , ताली आदि बजाकर खेतों से टिड्डियों को खदेड़ दिया । गांवों के खेतों से उडी टिड्डी के दलों ने दोपहर 12 बजे बिस्कोहर - इटवा मार्ग पर कोहडौरा , दोपेडौवा , बिस्कोहर आकर उड़ने लगी जिससे एक घंटे के लिए आवा गमन रुक गया लोग जहां थे वहीं खड़े होकर टिड्डियों को देख रहें थे , युवा वर्ग विडिओ बनाने में लगा था और बच्चे उन्हें पकड़ कर मार रहें थे , कोई - कोई बच्चा उन्हें जिंदा पकड़कर शीशी में बंद कर रहा था । फिलहाल ग्रामीणों की जागरूकता से टिड्डियों ने धान के फसलों को नुकसान नही पहुंचा सकी ।
कृषि विज्ञान केंद्र सोहना के कृषि वैज्ञानिक डा. प्रदीप कुमार ने बताया कि टिड्डियों की पहचान उनके चमकीले पीले रंग और पिछले लंबे पैरों से की जा सकती हैं टिड्डी जब अकेली होती है तो उतनी खतरनाक नहीं होती है। लेकिन, झुंड में रहने पर इनका रवैया बेहद आक्रामक हो जाता है। फ़सलों को एक ही बार में सफ़ाया कर देती हैं। आपको दूर से ऐसा लगेगा मानो आपकी फ़सलों के ऊपर किसी ने एक बड़ी-सी चादर बिछा दी हो।
*टिड्डियां क्या खाती हैं*
केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डा. एल सी वर्मा ने बताते कि टिड्डियां फूल, फल, पत्ते, बीज, पेड़ की छाल और अंकुर सब कुछ खा जाती हैं। हर एक टिड्डी अपने वजन के बराबर खाना खाती है। इस तरह से एक टिड्डी दल, 2500 से 3000 लोगों का भोजन चट कर जाता है। टिड्डियों का जीवन काल अमूमन 40 से 85 दिनों का होता है।
*टिड्डी दल से बचाव के उपाय*
टिड्डियों का उपद्रव आरंभ हो जाने के पश्चात् इसे नियंत्रित करना कठिन हो जाता है। हालांकि डा. प्रदीप कुमार ने किसानो को टिड्डी दल से बचने के लिए कई उपाय के बारे में बताया–फसल के अलावा, टिड्डी कीट जहां इकट्ठा हो, वहां उसे फ्लेमथ्रोअर से जला दें। टिड्डी दल को भगाने के लिए थालियां, ढोल, नगाड़़े, लाउटस्पीकर या दूसरी चीजों के माध्यम से शोरगुल मचाएं। जिससे वे आवाज़ सुनकर खेत से भाग जाएं, और अपने इरादों में कामयाब ना हो पाएं। टिड्डों ने जिस स्थान पर अपने अंडे दिये हों, वहां 25 कि.ग्रा 5 प्रतिशत मेलाथियोन या 1.5 प्रतिशत क्विनालफॉस को मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़कें। टिड्डी दल को आगे बढ़ने से रोकने के लिए 100 कि.ग्रा धान की भूसी को 0.5 कि.ग्रा फेनीट्रोथीयोन और 5 कि.ग्रा गुड़ के साथ मिलाकर खेत में डाल दें। इसके जहर से वे मर जाते हैं। टिड्डी दल सवेरे 10 बजे के बाद ही अपना डेरा बदलता है। इसलिए, इसे आगे बढ़ने से रोकने के लिए 5 प्रतिशत मेलाथियोन या 1.5 प्रतिशत क्विनालफॉस का छिड़काव करें।
500 ग्राम NSKE या 40 मिली नीम के तेल को 10 ग्राम कपड़े धोने के पाउडर के साथ या फिर 20 -40 मिली नीम से तैयार कीटनाशक को 10 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से टिड्डे फसलों को नहीं खा पाते।
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