कोरोना महामारी ने एक करोड़ से अधिक लोगों को संक्रमित किया। सथ ही डेढ़ लाख के करीब लोगों की जान भी ले ली। इस वैश्विक महामारी के कारण देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की गई थी, जिससे देश की आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई। लोगों की नौकरी गई। व्यापार को भी नुकसान पहुंचा। आर्थिक संकट से देश को बाहर निकालने के लिए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने भारी-भड़कम राहत पैकेज की भी घोषणा की थी। अब शुक्रवार को जापान के साथ 50 करोड़ येन यानी 3550 करोड़ रुपए के ऋण के लिए भारत ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं।
आर्थिक मामलों के विभाग में अतिरिक्त सचिव सीएस मोहापात्रा और जापानी राजदूत सातोशी सुजुकी ने नई दिल्ली में इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। भारत को 0.65% की ब्याज दर से यह राशि 15 साल में लौटाने होंगे। समझौते में पांच साल के ग्रेस पीरियड का भी जिक्र है।
जापान ने इससे पहले कोरोना संकट से निपटने के लिए भारत सरकार के प्रयासों का समर्थन करने के लिए 50 बिलियन येन के बजट सपोर्ट और एक बिलियन येन यानी 71 करोड़ रुपए की सहायता प्रदान की थी। जापानी दूतावास ने कहा कि कमजोर समूहों, जिनमें गरीब और महिलाएं शामिल हैं, महामारी के कारण आर्थिक मंदी से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
दूतावास ने कहा, "यह ऋण भारत सरकार द्वारा गरीब और कमजोर वर्ग की मदद के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रमों के लिए आवश्यक धन मुहैया कराता है। इनमें स्वास्थ्य और चिकित्सा क्षेत्र भी शामिल हैं, जो कोरोना के खिलाफ लड़ाई में आवश्यक हैं।"
एक बयान में कहा गया, 'वित्तीय सहायता का उद्देश्य भारत सरकार के कार्यक्रमों जैसे प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना (पीएमजीकेवाई) का समर्थन करना है, जिसका उद्देश्य सामाजिक-आर्थिक प्रभावों को कम करना और सामाजिक-आर्थिक संस्थानों को मजबूत करना है। इसमें गरीबों और कमजोरों को खाद्यान्न वितरित करने, निर्माण श्रमिकों को सहायता का प्रावधान और कोरोना से लड़ने वाले स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के लिए विशेष बीमा का प्रावधान शामिल है।''
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