गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अगले आदेश तक नए कृषि कानूनों के लागू करने पर रोक लगा दी और दिल्ली के बॉर्डर पर प्रदार्शन कर रहे किसानों की यूनियनों और केंद्र सरकार के बीच गतिरोध को हल करने के लिए चार सदस्यीय समिति गठित करने का फैसला किया। संपादकीय में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद इस मुद्दे पर गतिरोध जारी है। किसान यूनियनों ने समिति के चार सदस्यों से बात करने से इनकार कर दिया क्योंकि उन्होंने पहले कथित रूप से कृषि कानूनों का समर्थन किया था। 'सामना' में कहा गया, "प्रधानमंत्री मोदी को किसानों के विरोध और साहस का स्वागत करना चाहिए। उन्हें किसानों की भावनाओं का सम्मान करते हुए कानूनों को खत्म कर देना चाहिए। मोदी का आज जितना बड़ा कद है, ऐसा करने से उनका कद और बड़ा हो जाएगा।"
26 जनवरी को दिल्ली में किसानों की निर्धारित ट्रैक्टर रैली का जिक्र करते हुए संपादकीय में कहा गया कि अगर सरकार चाहती है कि स्थिति और न बिगड़े, तो किसानों की भावनाओं को समझने की जरूरत है। उसमें कहा गया कि इस प्रदर्शन में अब तक 60 से 65 किसानों की जान जा चुकी है और देश ने आजादी के बाद अब तक ऐसा अनुशासित आंदोलन नहीं देखा है।
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