पिछले पांच दशकों में यह पहला गणतंत्र दिवस होगा, जिसमें मुख्य अतिथि के तौर पर कोई विदेशी मेहमान नहीं होगा। इससे पहले सन् 1966 में गणतंत्र दिवस परेड में कोई विदेशी मेहमान शामिल नहीं हो सका था, जब 11 जनवरी को लाल बहादुर शास्त्री के अचानक हुए निधन के बाद 24 जनवरी को इंदिरा गांधी ने पीएम पद की शपथ ली थी। इसके अलावा सन् 1952 और 1953 में भी भारतीय गणतंत्र दिवस समारोह में कोई विदेशी प्रतिनिधि शामिल नहीं हुए थे।
इस बार राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद परेड की सलामी लेंगे।
एक अधिकारी ने बताया कि यह फैसला कई कारणों से लिया गया है। अधिकारी ने बताया, 'हम किसी विदेशी मेहमान को असहज स्थिति में नहीं डालना चाहते।' यूके में नए स्ट्रेन की वजह से बढ़ते कोरोना के मामलों को देखते हुए पीएम बोरिस जॉनसन ने भारत आने में असमर्थता जाहिर की थी। अब अगर कोई नेता भारत का न्योता स्वीकार करता है तो उसके अपने देश में यह छवि जाएगी कि वह बोरिस जॉनसन का स्थान भरने भर के लिए भारत बुलाए गए हैं। 1950 के बाद ऐसा दो बार हुआ है जब भारत के न्योते को विदेशी मेहमान की तरफ से अस्वीकार करने के बाद दूसरे मेहमान बुलाए गए हों।
इसके साथ ही कोरोना के यूके वाले स्ट्रेन ने भी हाहाकार मचाया हुआ है। 70 प्रतिशत तेजी से फैलने वाले इस स्ट्रेन की वजह से किसी भी नेता के दौरे को लेकर आखिरी समय तक अनिश्चितता बनी रहेगी। इन सबके अलावा नरेंद्र मोदी सरकार भी इस महामारी की स्थिति में किसी तरह का जोखिम नहीं उठाना चाहती है।
इस साल क्या होंगे बदलाव?
कोरोना की वजह से सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों को ध्यान में रखते हुए इस बार गणतंत्र दिवस परेड भी छोटी होगी। इस साल गणतंत्र दिवस पर 25 हजार से ज्यादा लोग शामिल नहीं हो पाएंगे। आमतौर पर यह संख्या 1 लाख होती है। इतना ही नहीं 15 साल से कम उम्र के बच्चों को भी परेड देखने के लिए अनुमति नहीं मिलेगी। सशस्त्र बलों और पैरा मिलिटरी की ओर से मार्च करने वाली टुकड़ियां भी छोटी रहेंगी। इन टुकड़ियों में सिर्फ 96 लोग होंगे, जहां पहले इसमें 144 लोग होते थे। इस बार परेड का रूट भी छोटा कर दिया गया है जिस वजह से यह विजय चौक से शुरू होकर नैशनल स्टेडियम पर ही खत्म हो जाएगी, जबकि पहले यह परेड लाल किले पर खत्म होती थी और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की संख्या भी बेहद कम होगी।
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