चौरी-चौरा शताब्दी समारोह के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र ने कहा कि 100 साल पहले सिर्फ थाने में आग नहीं लगी, यह आग लोगों के दिलों में भी लगी थी।
बात सही है लेकिन 4 फरवरी 1922 को हुई इस घटना के बाद जो हुआ तब किसी को अंदाजा नहीं रहा होगा कि जिस हादसे के साथ 'कांड' शब्द जुड़ गया हो, उसे आगे चलकर समारोह के रूप में सेलिब्रेट किया जाएगा।
अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन के दौरान कुछ लोगों की गुस्साई भीड़ ने गोरखपुर के चौरी-चौरा के पुलिस थाने में आग लगा दी थी। इसमें 23 पुलिसवालों की मौत हो गई थी।
यह पता चलने पर की चौरी-चौरा पुलिस स्टेशन के थानेदार ने मुंडेरा बाजार में कुछ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को मारा है, गुस्साई भीड़ पुलिस स्टेशन के बाहर जमा हुई थी।
23 पुलिस वालों को जिंदा जलाए जाने से आहत होकर महात्मा गांधी ने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन वापल ले लिया था।
इसके चार दिन बाद गांधीजी ने अपने लेख 'चौरी चौरा का अपराध' में लिखा कि अगर ये आंदोलन वापस नहीं लिया जाता तो दूसरी जगहों पर भी ऐसी घटनाएं होतीं।
दावा किया जाता है कि अगर असहयोग आंदोलन वापस नहीं लिया जाता तो भारत को आजादी तभी मिल गई होती।
महात्मा गांधी द्वारा आंदोलन वापस लिए जाने पर दूसरे कई लोगों की तरह उनके शिष्य जवाहरलाल नेहरू ने भी सवाल खड़े किए।
नेहरू ने कहा था कि इतने विशाल देश में, इतने बड़े आंदोलन के दौरान ऐसी एकाध घटनाएं हो जाती हैं।
शांत-चित्त सूत कात रहे गांधी चरखा रोककर सिर्फ इतना बोले, 'यही बात तुम मारे गए उन पुलिसवालों की विधवाओं से जाकर कहो।'
नेहरू के पास इसका कोई जवाब नहीं था। किसी के पास कोई जवाब नहीं था।
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