दिलीप श्रीवास्तव
ब्यूरो कार्यालय,नेशन वॉच
डुमरियागंज
इस बार डुमरियागंज नगर पंचायत की सीट सामान्य महिला के लिए आरक्षित हो गयी है, जिसकी वजह से सक्रिय राजनीति में अपनी भूमिका निभा रही महिलायेँ तो खुश हैँ, लेकिन साथ ही बहुत से ऐसे पुरुष भी खुश हैँ जो पुरुष सीट होने पर खुद चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे और अलग अलग पार्टियों से अपनी उम्मीदवारी पक्का मान कर क्षेत्र में सक्रिय थे |राजनीति में सक्रिय महिलाओं की खुशी तो समझ में आती है लेकिन ऐसे पुरुष जो खुद चुनाव नही लड़ सकते वो खुश क्यों हैँ ? ऐसे पुरुषों की खुशी का एकमात्र कारण है कि अब वो नगर पंचायत की कुर्सी पर अपनी दावेदारी अपनी धर्म पत्नी, माता या बहन के जरिये रखेंगे |अब गौर करने वाली बात ये है कि पार्टियां भी इस बात को जानती हैँ कि महिला सीट होने की स्थिति में ज्यादातर पुरुष ही नगर पंचायत की सीट अप्रत्यक्ष रूप से चलाते हैँ उसके बाद भी पार्टियां सभी बातों को नजरअंदाज करते हुए सिर्फ जिताऊ प्रत्याशी को ही टिकट दे देती हैँ |प्रश्न ये उठता है कि एक महिला ज़ब आम जनता के रूप में अपनी समस्या लेकर अपने महिला अध्यक्ष से मिलना चाहे तो उसकी मुलाक़ात महिला से ना होकर उस महिला के प्रतिनिधि से होती है, ऐसे में महिला सीट का क्या फायदा |डुमरियागंज नगर पंचायत में 13000 से ज्यादा महिला मतदाता है और लगभग लगभग हर पार्टी का महिला विंग भी है फिर भी पार्टियां सक्रिय राजनीति में अपनी भूमिका का निर्वहन कर रही किसी महिला को टिकट देने के बजाय किसी जिताऊ पुरुष उम्मीदवार के सगे संबंधी महिला को टिकट क्यों देती है? क्या ऐसा करने से महिलाओं के प्रति सभी राजनीतिक दलों के दोहरे चरित्र का पता नही चलता है? ऐसा करने से क्या सक्रिय राजनीति कर रही महिलाओं का अपमान नहीं होता है? ऐसा करने से "बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ " जैसे अभियान को धक्का नही लगता है? ऐसे ही कुछ ज्वलंत प्रश्नों के साथ ज़ब हमने महिला मतदाताओं से बात की तो उनके प्रश्नों का जवाब सभी राजनीतिक दलों को सोचने पर मजबूर करने वाला था |
एक प्राइवेट इंस्टिट्यूट में शिक्षक के रूप में सेवा दे रही नाजिया खातून ने मेरे प्रश्नों के जवाब में खुद ही प्रश्न करते हुए कहती हैँ कि एक महिला होने के बावजूद मेरे अब्बू के इंतकाल के बाद मैंने घर बाहर सब जिम्मेदारी संभाली, बहन की शादी से लेकर भाई के रोजगार लगवाने तक,महिलाओं को हमारे समाज ने हमेशा से कमतर आँका है, उन्होंने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि क्या कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स महिला नही थी, उनको समाज और परिवार का साथ मिला जिसकी वजह से उन लोगों ने अपना नाम अंतरिक्ष की दुनिया में अमर कर लिया यदि महिलाओं को भी मौका मिले तो महिलाएं बहुत कुछ कर सकती हैँ |
प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका साधवी ने कहा कि एक महिला कोई भी काम बहुत ईमानदारी और व्यवस्थित तरीके से कर सकती है, जहाँ तक बात राजनीति की है तो हमारे सामने इंदिरा गाँधी जी हैँ जिन्होंने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिये | मायावती जी हो, जयललिता जी हों या सुषमा स्वराज ये सभी महिला थी और इन लोगों ने राजनीति में अपना एक अलग मुकाम बनाया |
एक प्राइवेट स्कूल में कार्यरत शशि ने कहा कि इस बार वो वोट उसी को देंगी जो सक्रिय राजनीति में होगा वो किसी भी पार्टी से क्यों ना हो |
कुछ इसी तरह की बात निशा ने भी कहा, उन्होंने भी कहा कि राजनीतिक पार्टियों को भी अब सोचने की जरूरत है कि क्या वो सच में महिलाओं को बराबर का सम्मान दिलाना चाहते हैँ या सिर्फ सम्मान के नाम पर दिखावा करना चाहते हैँ |
कई लड़कियों को मुफ्त में सिलाई, कढ़ाई की शिक्षा देकर आत्मनिर्भर बना चुकी और एन सी सी कैडेट रह चुकी अंजलि ने भी माना कि पहले कि तुलना में आज हमारे समाज में महिलाओं को लेकर विचार बदला है जिसकी वजह से यू पी बोर्ड हो या कोई अन्य बोर्ड लड़कियां टॉप कर रही हैँ, आज बड़ी बड़ी कंपनियों की सी ई ओ लड़कियाँ हैँ | अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि सन 2000 के ओलम्पिक खेलों में सैकड़ों पुरुष खिलाड़ियों के असफल होने के बाद भारोत्तोलन में कर्णम मल्लेश्वरी ने काँस्य पदक जीत कर 1 अरब लोगों की इज़्ज़त बचाई थी | इसलिए अब राजनीतिक दलों को भी महिलाओं को कमतर आंकना बंद करना चाहिए और महिला सीट होने पर राजनीति में सक्रिय महिलाओं को ही टिकट देना चाहिए |
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